Customised Ads
मातृ पितृ आचार्य एवं अतिथि वंदन की संकल्पना को साकार करता वंदनम 2025 का कार्यक्रम

कानपुर नगर। रविवार 02नवम्बर 2025 (सूत्र/संवाददाता) सूर्य दक्षिरायण, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तदुपरि द्वादशी शरद ऋतु २०८२ कालयुक्त नाम संवत्सर। हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान कानपुर द्वारा भारतीय संस्कृति मूल्य शिक्षा और समाज के हर वर्ग की सेवा के विस्तार के लिए संपन्न हुआ वन्दनम 2025 । कार्यक्रम की मूल अवधारणा मातृ पितृ वंदन, आचार्य (गुरु) वंदन एवं अतिथि वंदन की संकल्पना को आज पं.  दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय नवाबगंज के विशाल सभागार में साकार रूप प्रदान करते हुए समाज के प्रतिष्ठित परिवारों के बच्चों के द्वारा उनके माता-पिता का पूजा वंदन, विभिन्न विद्यालयों से आए हुए छात्रों के द्वारा उनके आचार्यों (गुरुओं) का वंदन एवं कार्यक्रम में पधारे हुए अतिथियों का परिचय एवम वंदन हिंदू आध्यात्मिक सेवा संस्थान कानपुर महानगर के महासचिव नवेन्दु शुक्ला जी द्वारा किया गया।

कार्यक्रम में  मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में जयपुर से आए हिंदू आध्यात्मिक सेवा संस्थान के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं प्रसिद्ध समाजसेवी सोमकांत जी, संस्थान के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के अध्यक्ष व काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति शिक्षाविद प्रोफेसर गिरीश त्रिपाठी जी, भवानी भीख जी प्रान्त संघ चालक, डॉ. श्याम बाबू गुप्त जी विभाग संघ चालक, आशीष त्रिपाठी, अमरनाथजी, नवेन्दु शुक्ल, संजीव दीक्षित, सुनील कटियार, कर्नल बी.एस. राठौड़, डॉ. के एल वर्मा, सुष्मित मिश्रा, उमेश निगम, डॉ. शैलेन्द्र द्विवेदी, प्रो. मनोज प्रजापति, आचार्य कालीचरण दीक्षित उपस्थित रहे।

हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन के संयोजक पूर्वी उत्तर प्रदेश श्री अमरनाथ जी ने संस्थान के प्रस्तावना में बताया कि इसकी स्थापना वर्ष 2008 में दक्षिण के सुप्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री डॉक्टर एस गुरु मूर्ति के द्वारा हुई थी जो कि आज 2025 में 22 राज्यों के 44 केंद्रों में बढ़ चुका है।  कानपुर में आज इसी श्रृंखला में वंदनम कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम का मूल भावना भारतीय संस्कृति में मानव निर्माण पर विशेष बल दिया गया है। वंदना किसकी और क्यों आवश्यक है इस पर श्री सोमकांत जी ने कहा की वंदना का अर्थ स्तुति पूजन प्रार्थना उपासना है ।यह एक ऐसा बहुविकल्पी शब्द है जिसमें वर प्राप्ति की इच्छा अंतर निहित होती है वंदना में वंदन की महती भूमिका होती है वंदे, वंदन, आवन्दन, अभिवंदन, नमस्कार, नमन, नमामि, नमोनम, प्रणाम, प्रणिपात आदि हिंदू संस्कृति में बड़ों के सम्मान व अभिवादन के लिए शारीरिक और शाब्दिक अभिव्यक्ति प्रदर्शित की जाती है।

सोमकांत जी द्वारा वंदन का वैज्ञानिक कारण भी बताया गया और कहा गया कि मानव शरीर में सिर उत्तरी ध्रुव व पांव दक्षिणी ध्रुव माना गया है। चुंबकीय ऊर्जा हमेशा इसी उत्तर से दक्षिण अपना चक्र पूरा करती है, और पैरों में ऊर्जा का केंद्र बनता है। इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की माने तो चरण स्पर्श से हमें दिव्य शक्ति प्राप्त होती है। यह एक प्रकार का योग भी है। वंदन से रीढ़, जोड़ो, सर का रक्त प्रवाह ठीक रहता है, शरीर में लचीलापन बना रहता है। संयमित और सभ्य होने के साथ अहंकार खत्म हो जाता है। इसलिए हमेशा माता-पिता एवं गुरु को वंदन करना चाहिए। मनुस्मृति में भी लिखा है कि नियमित माता-पिता एवं गुरुओं की वंदना करने से आयु, विद्या, यश और बाल में वृद्धि होती है।

सोमकांत जी ने माता-पिता एवं गुरु के वंदन का दूसरा वैज्ञानिक कारण भी बताया कि आज देवोत्थान एकादशी के दिन किया गया माता-पिता एवं गुरु का वंदन प्रतिफल वही प्राप्त होगा जो 100 वर्षों तक लगातार ब्रह्म मुहूर्त में करने से प्राप्त होता है।

शास्त्रों में वर्णित है "पितरी प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवता" जो माता-पिता के प्रिय होते हैं वे देवताओं के भी प्रिय होते हैं।सर्वतीर्थ मयी माता और  सर्वदेवपिताः मानने वाले प्रथम पूज्य गणेश, श्रवण कुमार, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, श्री परशुराम, पितामह भीष्म, गरुड़, लव -कुश, वभ्रुवाहन,  पितृ भक्त पुंडलिक, सत्य काम और छत्रपति शिवाजी महाराज माता-पिता के प्रिय बनकर दुनिया में यश कीर्ति फैलाई। इसीलिए मातृ देवो भवः पितृ देवो भवः कहा जाता है। न केवल हिंदू धर्म में बल्कि दुनिया में उपस्थित सभी धर्म माता-पिता के लिए ऐसा ही भाव रखते हैं।

भारतीय परंपरा गुरु (आचार्य) का स्थान भी सर्वोपरि मानती है। हमारी मान्यता के अनुसार गुरु में ही ब्रह्मा, गुरु में ही विष्णु, गुरु में ही महेश है। गुरु ही ईश्वर का साक्षात स्वरूप है। अतः अपने गुरु का सम्मान और अभिवादन करना चाहिए। भारतीय परंपरा में अतिथि सत्कार को भी महान व्रत बताया गया है। अतिथिमभ्यागतं पूज्येद् यथाविधिः। अथर्ववेद में भी उपदिष्ट है कि वेदाग्य अतिथि जिस परिवार में जाता है वहां उसे सर्वप्रथम भोजन कराना चाहिए तदोपरांत ही गृहस्थी को स्वयं भोजन करना चाहिए।

श्रेष्ठ मानव निर्माण से ही श्रेष्ठ परिवार समाज एवं श्रेष्ठ राष्ट्र की कल्पना संभव है। माता-पिता, गुरु एवं विद्वान अतिथि का सानिध्य एवं आशीर्वाद मानव में अच्छे संस्कारों का आधान करता है और यह जीवन मूल्य ही आदर्श समाज एवं आदर्श राष्ट्र का निर्माण करते हैं।प्रचार प्रमुख राहुल कुमार मिश्रा ने बताया कि वन्दनम में 51 परिवारों के बच्चों ने अपने माता-पिता, बाबा- दादी का वन्दन कर साष्टांग प्रणाम किया । कार्यक्रम में लगभग 20 विद्यालयों के शिक्षकों का उनके छात्र/ छात्राओं के द्वारा वन्दन किया गया और मंच पर उपस्थित 21 अतिथियों का बालकों द्वारा वन्दन किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित माता-पिता, गुरुजन एवम उनके पुत्र - पुत्रियां और परिवारीजन वन्दन होते ही भावविभोर हों उठे।

हिंदू आध्यात्मिक सेवा संस्थान के सफल संचालन आर्ची बाजपेई व डॉ. ओपी पाठक द्वारा किया गया। 

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से संस्थान के पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र द्विवेदी, राहुल मिश्रा, चंद्रप्रकाश पांडेय,  विवेक शर्मा, प्रमोद पांडे, श्रीमती शैलजा रावत, विपिन शुक्ला प्रोफेसर सी. एल. मौर्य, भानु सिंह, श्रीमती मंजू जोशी, श्रीमती मीना त्रिवेदी, श्रीमती रेखा शुक्ला, सुनील वर्मा, वैभव गुप्ता, विशाल,  भार्गव, सुनील कुमार शुक्ला, नीरज तिवारी, विनय, अंकित, निखिल सचान, ज्योति शुक्ला, आदित्य, अवधेश कटियार, गौरव द्विवेदी, शरद जी समेत कई पदाधिकारी उपस्थित रहे।

टिप्पणियाँ