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जीवन में खून का थक्का बनना सुरक्षा की प्रक्रिया लेकिन जब यह थक्का गलत समय और स्थान पर बन जाए तो जानलेवा..

कानपुर नगर। रविवार 20जुलाई 2025 (सूत्र) सूर्य उत्तरायण, श्रावण मास कृष्ण पक्ष की दसमी, वर्षा ऋतु २०८२ कालयुक्त नाम संवत्सर। आज दिन रविवार,दिनांक 20 जुलाई 2025 को, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा द्वारा एक "वैज्ञानिक सी०एम०ई०" का आयोजन, "ऑडिटोरियम", आई.एम.ए. भवन में, रात्रि 8:00 बजे किया गया।

इस वैज्ञानिक सी०एम०ई० मे, वक्ता डॉ. ए.के. त्रिवेदी, निदेशक, कार्डियोलॉजी विभाग, रीजेंसी हेल्थकेयर, कानपुर ने, "एंटीकोआगुलंट्स" विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

वक्ता के अनुसार कभी-कभी जीवन में खून का थक्का बनना सुरक्षा की प्रक्रिया होती है, लेकिन जब यह थक्का गलत समय और स्थान पर बन जाए — जैसे कि हृदय, मस्तिष्क, फेफड़ों या पैरों की रक्त वाहिनियों में — तब यह जानलेवा बन सकता है। ऐसी स्थितियों में "एण्टीकोआगुलेंट दवाएं", जिन्हें आम भाषा में ब्लड थिनर कहा जाता है, जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

क्या हैं एण्टीकोआगुलेंट दवाएं ?

एण्टीकोआगुलेंट्स वे दवाएं हैं जो खून के थक्के (Clots) बनने की प्रक्रिया को धीमा या रोकती हैं। ये थक्के यदि धमनियों या शिराओं में अनियंत्रित रूप से बनें, तो यह स्ट्रोक, हार्ट अटैक, डीप वेन थ्रॉम्बोसिस (DVT) या पल्मोनरी एम्बोलिज़्म जैसी गंभीर स्थितियों का कारण बन सकते हैं।

इन दवाओं का उपयोग ऐसे मरीजों में किया जाता है जिन्हें

  1. हृदय संबंधी रोग (जैसे एट्रियल फिब्रिलेशन)
  2. कृत्रिम हृदय वाल्व
  3. लंबे समय तक बेडरेस्ट
  4. सर्जरी के बाद रक्त थक्का बनने का खतरा
  5. पहले स्ट्रोक या DVT हो चुका हो

मुख्य प्रकार की एण्टीकोआगुलेंट दवाएं

1. गोलियाँ

• वॉरफरिन लंबे समय से प्रयोग में आने वाली दवा, जिसकी प्रभावशीलता INR परीक्षण से मापी जाती है।

• डाबीगैट्रान, रिवारॉक्साबैन, एपिक्साबैन एवं सबसे नई दवा - "एंडोक्साबैन" आधुनिक दवाएं एंडोक्साबैन जिन्हें, (नवीन थक्कारोधी गोलियाँ) कहते हैं, इनमें नियमित INR जाँच की ज़रूरत नहीं होती।

2. इंजेक्शन द्वारा दी जाने वाली दवाएं

• हेपारिन अस्पतालों में आपातकालीन स्थिति में दिया जाता है।

 •(कम आणविक भार हेपरिन) DVT/PE की रोकथाम व गर्भावस्था में सुरक्षित विकल्प।

इन दवाओं से जुड़े संभावित जोखिम

1. अत्यधिक रक्तस्राव: नाक, मसूड़ों, मल-मूत्र, या आंतरिक रक्तस्राव के रूप में हो सकता है।

2. गर्भवती महिलाओं में कुछ दवाएं निषिद्ध होती हैं।

3. सर्जरी से पहले इन दवाओं को रोकने या समायोजित करने की ज़रूरत होती है।

4. अन्य दवाओं व आहार (जैसे विटामिन K युक्त भोजन) से परस्पर प्रभाव हो सकता है, विशेषतः वॉरफरिन के साथ।

जनता के लिए ज़रूरी सुझाव

1. दवा सिर्फ चिकित्सक की सलाह पर ही लें।

2. नियमित रूप से आवश्यक जांचें कराएं (जैसे INR – खासकर वारफरिन उपयोगकर्ताओं को)।

3. खुद से दवा न बदलें या बंद करें।

4. खून बहने पर, गिरने या चोट लगने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

5. मेडिकल आईडी कार्ड या ब्रेसलेट पहनें जिसमें दवा का उल्लेख हो।

6. ओवर-द-काउंटर दवाएं या आयुर्वेदिक दवाएं लेने से पहले डॉक्टर को सूचित करें।

आम जनता से अपील

“जानकारी, जागरूकता और नियमित निगरानी - एण्टीकोआगुलेंट दवाओं के सुरक्षित और सफल उपयोग की तीन सबसे मजबूत कड़ियाँ हैं। इन दवाओं को लेकर डरना नहीं, समझदारी और सतर्कता दिखाना ज़रूरी है।"

आज, जब दिल और नसों से जुड़ी बीमारियाँ लगातार बढ़ रही हैं, तो इन दवाओं की भूमिका और भी अहम हो जाती है। सही समय पर इनका उपयोग न सिर्फ रोग से बचाता है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।

इस कार्यक्रम के चेयरपर्सन प्रो. डॉ. आर.पी.एस. भारद्वाज, पूर्व निदेशक, एल.पी.एस. इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी, कानपुर एवं प्रो. डॉ. मोहम्मद अहमद, पूर्व प्रोफेसर, एल.पी.एस. इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी, कानपुर थे। वही पर पैनलिस्ट प्रो. डॉ. ऋचा गिरि, प्रोफेसर के.पी.एस. इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन एंड वाइस प्रिंसिपल, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कॉलेज, कानपुर एवं डॉ. एस.के. अवस्थी, वरिष्ठ सलाहकार एवं चेस्ट फिजिशियन,रीजेंसी हेल्थकेयर, कानपुर थे।

आई.एम.ए. कानपुर की अध्यक्ष डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ गणेश शंकर वैज्ञानिक सचिव आई एम ए कानपुर ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन, आई.एम.ए. कानपुर के सचिव, डॉ. विकास मिश्रा ने दिया।

इस कार्यक्रम में, डॉ. ए.सी. अग्रवाल, चेयरमैन वैज्ञानिक सब कमेटी, डॉ. कुणाल सहाय, उपाध्यक्ष, आई.एम.ए. कानपुर एवं डॉ कीर्ति वर्धन सिंह संयुक्त वैज्ञानिक सचिव, प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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