कानपुर नगर। मंगलवार 06मई 2025 (सूत्र/सूवि/पीआईबी) सूर्य उत्तरायण, बैशाख मास शुक्ल पक्ष की नवमी, ग्रीष्म ऋतु २०८२ कालयुक्त नाम संवत्सर। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा द्वारा 6 मई को मनाए जाने वाले "विश्व अस्थमा दिवस" के संबंध में आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को आईएमए कानपुर की अध्यक्ष डॉ. नंदिनी रस्तोगी, उपाध्यक्ष डॉ. कुणाल सहाय, मानद सचिव और माइक्रोबायोलॉजी विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर के प्रोफेसर डॉ. विकास मिश्रा, आईएमए एएमएस के चेयरमैन और क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. अनुराग मेहरोत्रा एवं
अतिथि और विशेषज्ञ: डॉ. सुधीर चौधरी, पूर्व विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर, डॉ. एके सिंह, वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट और क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ, रीजेंसी अस्पताल, कानपुर और डॉ. अवधेश कुमार, विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर ने संयुक्त रूप से संबोधित किया। इस बारे में जानकारी देते हुए IMA प्रेसिडेंट कानपुर डॉक्टर नंदिनी रस्तोगी ने बताया की अस्थमा के बारे में जनसामान्य को जागरूक करना और उसके प्रभावी नियंत्रण के लिए शिक्षा और सहयोग को बढ़ावा देना है।इस वर्ष अस्थमा दिवस 2025 थीम:
"सभी के लिए इनहेलर उपचार सुलभ बनाएं"।
वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर कुणाल सहाय ने जानकारी दी की अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जो बच्चे से लेकर बड़े तक को परेशान करती है और विगत दिनों में टेक्नोलॉजी और साइंस के मिश्रण से इसके इलाज में काफी नवीनतम दवाइयां उपलब्धि हैं जो की इस्तेमाल करने में बेहद आसान है बच्चों और बड़े सभी के लिए। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के चेस्ट डिपार्टमेंट के पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर सुधीर चौधरी ने बताया कि विगत वर्षों के मुकाबले सांस की बीमारियां प्रदूषण एवं सिगरेट तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से बढ़ती जा रही है और इसकी रोकथाम और उपचार में दवाइयां के साथ सिगरेट तंबाकू का कंट्रोल भी बहुत आवश्यक है।
इस अवसर पर GSVM के मुरारीलाल अस्पताल के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. अवधेश कुमार ने बताया कि अस्थमा एक गंभीर लेकिन नियंत्रित करने योग्य बीमारी है। सही समय पर पहचान, नियमित इनहेलर उपयोग, और ट्रिगर से बचाव से रोगी सामान्य जीवन जी सकते हैं। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा इस दिशा में लगातार जनजागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैंl जैसे इनहेलर से जुड़ी शंकाएँ और मिथक –
मिथक 1: इनहेलर की आदत लग जाती है।
सच्चाई: इनहेलर दवा का सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। यह आदत नहीं बनाता, बल्कि समय पर लेने से अस्थमा नियंत्रण में रहता है।
मिथक 2: इनहेलर से साइड इफेक्ट्स होते हैं।
सच्चाई: इनहेलर में दवा बहुत कम मात्रा में होती है और यह सीधे फेफड़ों तक पहुँचती है, जिससे पूरे शरीर पर असर कम होता है।
मिथक 3: इनहेलर केवल गंभीर मरीजों के लिए होते हैं।
सच्चाई: इनहेलर हर अस्थमा मरीज के लिए होते हैं, चाहे लक्षण हल्के हों या गंभीर। इन्हें शुरू से इस्तेमाल करने पर बीमारी बिगड़ती नहीं है।
मिथक 4: इनहेलर की ज़रूरत सिर्फ लक्षण होने पर है।
सच्चाई: नियंत्रक इनहेलर नियमित रूप से लेना जरूरी है, चाहे लक्षण हों या नहीं। यह भविष्य के अटैक से बचाता है।
डॉ. मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा के मरीजों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। ऐसे में अस्थमा के लक्षणों की शीघ्र पहचान और नियमित इलाज अत्यंत आवश्यक है।
डॉ ए के सिंह जो कि रीजेंसी हॉस्पिटल के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट हैं उन्होंने कहा कि आज भी कई मरीज इनहेलर को अंतिम विकल्प मानते हैं, जबकि यह प्राथमिक उपचार का सबसे प्रभावी माध्यम है। हमारा प्रयास है कि हम समाज में इनहेलर उपयोग का सही तरीका लोगो को बताएं ताकि कम खुराक से ज्यादा फायदा मरीजों को मिल सके।IMAAMS के चेयरमैन व पूर्व वाइस प्रेसिडेंट डॉ अनुराग मेहरोत्रा के अनुसार अगर गंभीर स्थिति में आते हैं अथवा ऑक्सीजन लेवल कम हो तो आईसीयू में लेकर उपचार करना चाहिए। रेस्पिरेटरी फेल्योर या बेहोश मरीजों को वेंटिलेटर की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
IMA सचिव डॉ विकास मिश्रा ने बताया की बहुत कम या अधिक उम्र के लोग व जिनको हृदय, गुर्दा तथा मधुमेह के मरीजों को बचाव के लिए फ्लू व निमोनिया का टीका उपलब्ध है।अस्थमा कोई असाध्य रोग नहीं है। अंत में डॉ विकास मिश्रा सचिव IMA ने सभी उपस्थित लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
addComments
एक टिप्पणी भेजें