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अभिलेखागार के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी एवं अभिलेख प्रदर्शनी कार्यक्रम सम्पन्न

लखनऊ। शुक्रवार 02मई 2025 (सूत्र/सूवि/पीआईबी) सूर्य उत्तरायण, बैशाख मास शुक्ल पक्ष की पंचमी, ग्रीष्म ऋतु २०८२ कालयुक्त नाम संवत्सर। उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार, लखनऊ के 76 वें स्थापना दिवस के अवसर पर 1857 का स्वतंत्रता संग्राम विषयक अभिलेख प्रदर्शनी एवं संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 02 मई, 2025 को किया गया। मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट वक्ता प्रो० अविनाश चन्द्र मिश्रा, अधिष्ठाता/विभागाध्यक्ष, कला संकाय एवं इतिहास विभाग, शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय एवं प्रो० प्रमोद कुमार श्रीवास्तव पाश्चात्य इतिहास विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ तथा अन्य गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में दीप प्रज्वलन द्वारा पूर्वान्ह 11ः00 बजे कार्यक्रम शुभारम्भ किया गया।

इस अवसर पर आयोजित ’1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ विषयक अभिलेख प्रदर्शनी का उद्घाटन लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रो० प्रमोद कुमार श्रीवास्तव के कर कमलों द्वारा किया गया। यह प्रदर्शनी आम जनमानस के लिए 10 मई, 2025 तक खुली रहेगी। प्रदर्शनी के मुख्य आकर्षण नाना साहब की गिरफ्तारी का इश्तिहार, रानी लक्ष्मी बाई का मृत्यु संबंधी टेलीग्राम तथा उनकी सम्पत्ति को जब्त करने संबंधी आदेश, युद्ध क्षेत्र में बेगम हजरत, अवध में स्वतंत्र सरकार, रेजीडेन्सी में घिरे अंग्रेज, मौलवी अहमद उल्ला शाह का टेलीग्राम तथा सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित दुर्लभ चित्र है।

मुख्य अतिथि प्रो० अविनाश चन्द्र मिश्रा जी ने कहा कि इतिहास एक संवाद की सतत् प्रक्रिया है किसी इतिहासकार ने इसे सिपाही विद्रोह के रूप में किसी ने इसे किसान आन्दोलन के रूप में परिभाषित किया और कहा कि हम एक प्राचीन संस्कृति के वाहक है, मनुष्य को उसके सांस्कृतिक परिवेश के बिना नहीं समझा जा सकता। 1857 का आन्दोलन किसी बंदूक की चर्बी से नहीं उत्पन्न हुआ बल्कि यह आन्दोलन राष्ट्रीयता का पुनरोद्भव था।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो० प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि अभिलेखागार में इतिहास के जीवंत दस्तावेज संरक्षित हैं, युवा शोधार्थियों को इनका अध्ययन कर उन दस्तावेजों में अंकित विषयों के मर्म को समाज के सामने लाना चाहिए।

प्रो० अर्चना तिवारी, लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में गिरमिटिया मजदूरों का गन्ना उत्पादन के लिए कैरेबियन देशों में अंग्रेजो द्वारा किये गये विस्थापन के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किये और 1857 की क्रान्ति के क्षेत्रों से विशेष रूप से गिरमिटिया मजदूरों के विस्थापन पर प्रकाश डाला।

डॉ० सुशील कुमार पाण्डेय, सह प्राध्यापक, इतिहास विभाग, डॉ० भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने अपने वक्तव्य कहा कि इतिहास अतीत की वस्तु है एवं वर्तमान की समस्याओं को सुलझाने का सबसे अच्छा माध्यम है, इसलिए राष्ट्रीय मूल्यों के सापेक्ष इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए।

डॉ० सौरभ कुमार मिश्रा, सहायक प्राध्यापक, ऐशियन कल्चर विभाग, शशिभूषण बालिया विद्यालय डिग्री कॉलेज, लखनऊ ने अपने उद्बोधन में बताया कि 1857 की क्रान्ति कामगार एवं श्रमिक वर्ग के उत्पीड़न का प्रतिफल था। डॉ० शशि कान्त यादव, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, डी०ए०वी० पी०जी० कालेज, वाराणसी ने अपने उद्बोधन में इस बात पर बल दिया कि शोधकार्य बिना किसी पूर्वाग्रह से किया जाना चाहिए। डॉ० पूनम चौधरी, सहायक प्राध्यापक ने 1857 के आन्दोलन में गुमनाम लोंगो के योगदान पर शोध किये जाने पर बल दिया। डॉ० मनीषा, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने अपने उद्बोधन में अंग्रेजो द्वारा कुप्रशासन के आरोप में अवध के अधिग्रहण पर विचार व्यक्त किया और यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि इसी कारण से अवध क्षेत्र में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम इतना व्यापक रूप धारण कर सका। डॉ० सनोवर हैदर ने अपने उद्बोधन में कहा कि 1857 के आन्दोलन का प्रारम्भ लखनऊ से हुआ इस पर भी शोध किया जाना चाहिए। उक्त के अतिरिक्त संगोष्ठी में 45 शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किये।

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत अमित कुमार अग्निहोत्री, निदेशक एवं धन्यवान ज्ञापन विजय कुमार श्रीवास्तव, सहायक निदेशक संरक्षण, उत्तर प्रदेश राजकी अभिलेखागार द्वारा किया गया।

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